मेटाबोलिक उपचार क्या है
बिमारी दो तरह के होते हैं . एक्यूट(तत्काल ) और क्रोनिक (पुरानी ) , एलोपैथिक विज्ञान के तहत बीमारियों का लक्षण आधारित उपचार सिर्फ एक्यूट अथवा नयी बिमारी जैसे बुखार , इन्फेक्शन , निमोनिया , मैनिंजाइटिस इत्यादि के लिए है
परन्तु क्रोनिक बीमारियों जैसे डायबिटीज , उच्च रक्तचाप , मोटापा , कैंसर जैसे बीमारियों में लक्षण आधारित उपचार ज्यादा दिन तक के लिए नहीं हो सकता . बीमारियों के कारण का उपचार होनी चाहिए परन्तु हो इसका उल्टा है . किताबों में सही जानकारी नहीं दी गयी है
वैज्ञानिक अनुसंधान जो दवा कंपनियों के लिए लाभदायक होती है वही किताबों में लिखी जाती है और जो अनुसंधान से फायदा नहीं दीखता उसे कचरे में डाल दिया जाता है
सरकारों ने अनुसंधानों का व्यापारीकरण करने की अनुमति दे रखी है . जो इंसानियत के लिए खतरा है .
मेटाबोलिक उपचार बीमारियों की वजह को समाप्त कर बीमारियों से छुटकारा का रास्ता है . इसका प्रयोग मैंने कैंसर के उपचार में भी कर चुका हूँ . कैंसर का भी लक्षण आधारित उपचार गलत है . चिकित्सक कैंसर की कोशिकाओं को मारना चाहते हैं ( जोकि बिना व्यक्ति को मारे बिना संभव नहीं है ) क्योंकि इसमें दवा कंपनियों को फायदा है , इसलिए वह बातें किताबों में लिखी है . वास्तविकता यह है की कैंसर मेटाबोलिक उपचार से ठीक होता है .
लोग जानकारी के अभाव में कीमोथेरेपी जैसे जानलेवा उपचार को अपना रहे हैं . जिसके पास पैसा होता है वह निश्चित तौर पर कैंसर से मर जाते हैं जबकि गरीब लोग कैंसर से नहीं मर रहे हैं
कैंसर में लोगों को कोई भी उपचार नहीं कराना चाहिए अथवा मेटाबोलिक उपचार को अपनाए . मेटाबोलिक उपचार में कैंसर ठीक होने की काफी संभावना होती है
मैं जानता हूँ की ओंकोलोजिस्ट को मालुम है की कीमोथेरेपी से कोई भी व्यक्ति छः माह तक ही जिन्दा बचता है इसलिए सभी मरीज को वह छः महिना बचने की उम्मीद बताते हैं ———- कीमोथेरेपी एक तरह का मर्डर है , लोगों को इसबात से अवगत कराएं
कभी कभी अन्य बिमारिओं को कैंसर बता कर लो डोज कीमोथेरेपी दी जाती है और लोग समझते हैं की उनका कैंसर का उपचार हुआ है . कैंसर का उद्योग मानवता के नाम पर एक कलंक है