मृत्यु एक सत्य है और एक दिन सभी की मृत्यु हो जाती है. मसलन अगर व्यक्ति दुर्घटना से ना मरे तो फिर यह शरीर किस तरह मृत्यु को प्राप्त होता है.
मृत्यु की स्वाभाविक प्रक्रिया:(Science of death)
मनुष्य के जीवन में जब सभी काम ख़त्म हो जाते थे, मसलन बेटे बेटियों का घर बस जाना इत्यादि तो वह व्यक्ति स्वाभाविक रूप से बुढ़ापे में अपने इष्ट देव को याद किया करता था, हिन्दू धर्म के अनुसार वह इंसान अपने पितरों और कुल देवता की याद करता था और उससे अपने पास बुलाने को कहता था. वह व्यक्ति सम्मान से जीवन बिताने के बाद उतने ही सम्मान से रोज ईश्वर की पूजा किया करता और खुद की मृत्यु के लिए ईश्वर से प्रार्थना किया करता था.

एक सम्मानित व्यक्ति सम्मान से जीवन बसर कर सम्मान की मृत्यु, एक सुखद अंत को प्राप्त होता था. महाभारत में इसकी चर्चा हुई है जिसमे भीष्म पितामह ने अपने शरीर त्यागने का वक्त निर्धारित किया था और अनेक तीर लगने के बाद, शरीर के क्षत-विक्षत होने के बाद भी उस शरीर को जिन्दा रख कर सही मुहूर्त में ही प्राण त्यागे थे. वेदों और पुरानों में मृत्यु से पहले कई जरूरी पूजा पाठ और विधि विधान अथवा यज्ञ करवाने की चर्चा है. मसलन मृत्यु एक स्वाभाविक और स्वेच्छा से होने वाली प्रक्रिया थी.

मृत्यु की तैयारी कैसे होती है.
शरीर के सभी काम आपका अंतर्मन के द्वारा किया जाता है जैसे खाना, पीना, सोना, अथवा कोई दूसरी जरूरी काम. व्यक्ति का अंतर्मन अथवा Subconcious Brain किसी भी काम को बार बार करके उसपर दक्षता हासिल करता है और यही उसकी वास्तविकता बन जाती है.
व्यक्ति के जब सभी सांसारिक काम ख़त्म हो जाते हैं तो उसका अंतर्मन स्वाभाविक रूप से अपने पितरों और इष्ट देव से प्रार्थना करके मृत्यु की कामना करने लग जाता है. वह बार-बार ईश्वर को याद कर खुद को अपने पास बुलाने की इच्छा जाहिर करता है. ऐसा करने से उसका शरीर मृत्यु की तैयारी करने लग जाता है, और धीरे धीरे उसका शरीर मृत्यु की ओर अग्रसर हो जाता है.
व्यक्ति का मृत्यु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, आप देखते हैं कि डर से भी व्यक्ति की अचानक मृत्यु हो जाती है. ऐसा क्यों होता है.
हरेक व्यक्ति के अंतर्मन में जिस तरह सेक्स करने, खाने, अथवा दूसरी चीजों का प्रोग्राम होता है ठीक उसी तरह व्यक्ति के जीवन में मृत्यु का भी प्रोग्राम होता है.
आप इसे इस तरह से समझें, जब इंसान किसी ऐसे संकट में फंस जाता है जससे वह बाहर नहीं निकल सकता (वास्तविक अथवा काल्पनिक रूप से) तो उसका अंतर्मन मृत्यु के प्रोग्राम की शुरुआत करता है. उदहारण के तौर पर कोई व्यक्ति सिर्फ सर्प के भय से भी प्राण त्याग देता है सर्प के काटने का इंतज़ार उसका शरीर नहीं करता, मसलन उस आदमी का अंतर्मन खुद का अंत कर उस खतरे से खुद का बचाव कर लेती है जो कष्टदायक मृत्यु दे सकता था.
इस तरह दूसरी भय की स्थिति जैसे भूकंप, गोली बारी इत्यादि में भी कई बार लोग बिना चोट लगे मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं. इस तरह आप देखते है कि मृत्यु एक स्वाभाविक शारीरिक प्रक्रिया है.
जिस तरह से व्यक्ति अपने अंतर्मन को कण्ट्रोल कर अथवा प्रोग्राम कर विभिन्न प्रकार के काम में दक्षता हासिल करता है उसी तरह व्यक्ति के अंतर्मन को प्रोग्राम कर व्यक्ति के मृत्यु पर कण्ट्रोल किया जा सकता है. उसका सबसे बेहतरीन उदहारण आत्मघाती दस्ता हैं .
आप देखते हैं वह आत्मघाती किस तरह सभी बाधाओं जैसे पुलिस और आम लोगों से बचकर और काफी बुद्धिमता का इस्तेमाल करके वह खुद को बम से ख़त्म कर लेता है और आस पास के लोग भी मर जाते हैं. मसलन आदमी के अंतर्मन को कण्ट्रोल अथवा प्रोग्राम कर व्यक्ति को मृत्यु के लिए तैयार किया जाता है. ठीक उसी तरह व्यक्ति के अंतर्मन को प्रोग्राम कर किसी मरने वाले को बचाया भी जा सकता है.
व्यक्ति का अंतर्मन अथवा Subconcious Brain कोई काम को दक्षता से करने के लिए उसे बार-बार दोहराता रहता है. अंतर्मन के काम करने और जरूरी चीज पहचानने का यही वास्तविक तरीका है. आपका अंतर्मन बार बार रिपीट हो रही चीजों पर भरोसा करता है और कोई जरूरी काम को बार बार रिपीट कर उसपर दक्षता हासिल कर लेता है, और मृत्यु भी उसमे से एक है.
लाइलाज बिमारी में भी आपका अंतर्मन मृत्यु की तैयारी करता है.
जब आपको कोई बिमारी हो जाए जो ठीक नहीं होती हो अथवा जिसके बारे में आपने कई लोगों से सुना है, जैसे डायबिटीज, कैंसर, किडनी फेलियर इत्यादि. किसी बिमारी के कभी ठीक नहीं होने का सीधा मतलब है उस बिमारी से मौत होना. व्यक्ति के वास्तविक मृत्यु का समय और परिस्थिति उसे उस ओर बुलाता है जिसमें वह अपने पितरों के पास जा सके वह कुल देवता को याद कर सके, परन्तु उसके अंतर्मन को इस अस्वाभाविक मृत्यु की तैयारी करनी पड़ती है.
जब आप चिकित्सकों के चक्कर काटने हैं तो वह व्यक्ति घोर भय के माहौल में शुरुआती दौर में तो अपने कुल देवता को याद करता है परन्तु बाद में उसका शरीर साथ नहीं देने लग जाता है. वह कदापि मरना नहीं चाहता वह किसी तरह कुछ दिन और जीना चाहता है जिससे उसका अंतर्मन स्वाभाविक मृत्यु की तैयारी कर सके, लेकिन जब वह चिकित्सा व्यापार के चक्कर में मृत्यु का यह नया तरीका बार बार सुनता है तो उसका अंतर्मन इस नए अंत को स्वीकार्य कर लेता है. वह व्यक्ति और उसका परिवार चिकित्सकों और अस्पतालों में जिंदगी की भीख मांगता रहता है. क्योंकि उसका जीवन मूल्य पलट चुका है इसलिए वह नहीं जानता कि उसे जिन्दगी कौन देता है और उसे जिंदगी की भीख किससे मांगनी चाहिए.
इस तरह आप अपने लोगों को ना तो अच्छी जिंदगी दे पाते हैं और ना ही अच्छी मौत. आप इस बात को स्वीकार्य करें या नहीं परन्तु आपने इस घटिया जिन्दगी और मौत का चुनाव खुद ही किया है.
अहंकार ही घटिया जिंदगी और अधार्मिक मृत्यु की वजह है.
आखिर कोई जान बूझकर खुद घटिया जिंदगी और मृत्यु का चुनाव क्यों करता है. आखिर क्या वजह है कि लोग अपना जीवन बेहतर बनाने की कोशिश भी नहीं करते और अपनी जवानी तो बर्बाद करते ही हैं और एक अधार्मिक मृत्यु को प्राप्त होते हैं.
क्या इसकी वजह अहंकार है. क्या होता है अहंकार. क्या अहंकारी सिर्फ रावण था. क्या है अहंकार की वैज्ञानिक वजह ?

हम जो बार बार सुनते अथवा देखते हैं इसी से हमारा अंतर्मन एक अवधारना बनाता है जिसे बिलीफ सिस्टम (Belief System) कहते हैं. हमारी शिक्षा और उसे ग्रहण करने में हमारी कोशिश हमारे बिलीफ सिस्टम को वास्तविक रूप प्रदान करता है. जिसे आप इंटेलिजेंस (Intelligence) भी कह सकते हैं.
जो लोग ज्यादा बुद्धिमान होते हैं अथवा यूँ कहें वह खुद को बुद्धिमान समझते हैं उसका बिलीफ सिस्टम उतना ही मजबूत होता है. इस तरह आप खुद के मन में यह बैठा लेते हैं कि आपकी बिमारी लाइलाज है.
आपकी यह अवधारणा किसी व्यापार को चलाने के लिए आपके अंतर्मन में व्यापारियों द्वारा स्थापित की गयी है जो धीरे धीरे इतना मजबूत हो जाता है कि वह एक अहंकार की शक्ल ले लेता है.
अहंकारी सिर्फ रावण ही नहीं था, आम आदमी भी उतना ही अहंकारी होता है.
अहंकार से ग्रसित इंसान जीवन भर अनगिनत कष्ट झेलकर एक अधार्मिक मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.
इस तरह, अहंकार सिर्फ रावण में ही नहीं था, आम आदमी भी अहंकार की वजह से कष्ट झेलता है और अधार्मिक मृत्यु को प्राप्त होता है. अहंकार का मतलब घमंड नहीं वल्कि अपने अनुभवों की वजह से खुद का सर्वनाश करना होता है. अपने अनुभवों पर अटूट विश्वास की वजह से कष्ट झेलने वाला व्यक्ति भी अपने मार्ग को नहीं बदलता और उसका यह भरोसा अहंकार की शक्ल ले लेता है, जिसकी वजह से उसकी वास्तविकता बदल जाती है और उसके जीवन मूल्य पलट जाते हैं.
अपने अनुभवों की वजह से खुद का सर्वनाश करना ही अहंकार है.
रावण अथवा जिसे आम तौर पर आप अहंकारी मानते हैं, वे लोग भी अपने अनुभवों अथवा यूँ कहें अपनी ताकत अथवा बुद्धिमता पर अटूट भरोसा की वजह से ही गलत निर्णय लेते हैं और खुद के पतन और समाज में आलोचना का पात्र बनते हैं.
हरेक व्यक्ति की वास्तविकता यह है कि वह स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हो, मसलन बिना बिमारी के मृत्यु, परन्तु जीवन मूल्य के पलट जाने से और उसके खुद के अहंकार की वजह से वह अपने मार्ग को नहीं बदलता और ईश्वर पर से भरोसा टूटने की वजह से कष्टमय और अधार्मिक मृत्यु को प्राप्त होता है.